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न्द हुआ नहीं, यदि आगे को बन्द हो जावगा तो मोदवालों को कुछ हानि नी नहीं है. क्यों कि सब धर्मात्माओं का यही मत है, कि इस दुःख रूपी संसार से छुटकारा होवे अर्थात् मुक्ति (अनन्त सुख की प्राप्ति) हो, तो हमारी बुद्धि के अनुसार सब की इच्छा पूर्ण होय तो अच्छी बात है, परन्तु तुम यह बतलाओ कि लोक में जीव कितने हैं ?: ... आरियाः-असंख्य होंगे, वा अनन्त. .... जैनी:--फिजकते क्यों हो ? साफ अनन्त दी कहो; तो अब अनन्त शब्द का क्या अर्थ है ? न अन्ते, अनन्ते; तो फिर अनादि की आदि कहनी, और अनन्त का अन्त कइना, यह दोनों दी मिथ्या हैं. और इसका असली परमार्थ तो पूर्वक घडव्य का स्वरूप गुरू कृपा से सीखा वा सुना जाय तब जाना जाता है. यथा कोई विद्यार्थी किसी पएिकत के पास दिसाव सीखने को आया, तब पएिकत