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२४ राजपूतः-तो हम घना ही धन व्यय कर दें और सर्कार से विज्ञप्ति ( अर्ज ) करें कि हमसे क्या अपराध हुआ, जो आप हमें गांव से बाहिर नहीं जाने दो हो, और वकील जी खमा करें, इत्यादि. ... । हमः, जवाजी ! तुम अस्सी वर्ष से यहां ही रहते हो, तबसे तो घवराये नहीं, जो एक महीने की रुकावट दो गई तो क्या हुआ, जो इतनी सिफारशें और घबराहट करना पमा
राजपूतः अज़ी, महात्माजी.! वद तो अपनी इच्छा से रहना है, यह परवश का रहना है सो कैद है:
दमः बस, जो पराधीन अर्थात् किसी जोरावर की रुकावट से एक स्थान में रहे तो वह कैद, है, परन्तु सच्चिदानन्द मोद रूप आत्मा स्वाधीन सदा आनन्द रूप है इसको कैद कहना मूखी का काम है. तब वह समा.