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१३ ऐसे कर्मबंध और मोक्ष होती है, इत्यादिक. पोर तुम भी इसी बात को मानते दो; परन्तु यथार्थ न समकने से और प्रकार से कहते हो. जैसे कि, इश्वर ने ऋषियों के हृदय में ज्ञान की प्रेरणा की, तब उन्होंने वेद कहे. सो हे जोले ! क्या इश्वर को राग द्वेष थी, जो कि उन चार ऋषियों के हृदय में ज्ञान दिया, और सब को न दिया ? रिया- जी ! जिनके हृदय शुद्ध
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होते हैं, उन्हीं को ज्ञान देते हैं. जैनी: -- तो बस ! वही बात जो हमने उपर लिखी है कि ईश्वर ज्ञान नहीं देता, जिन ऋषियों के हृदय तप-संयम से शुद्ध हो जाता दें, उनको स्वयं दी ईश्वर का ज्ञान प्राप्त हो जाता है. बस ! फिर वह ऋषजदेवजी देहान्त होनेपर रागद्वेष वा संज्ञा के प्रभाव से मोक्ष प्रर्थात् ईश्वर परमात्मा के प्रकाश में प्रकाश रूप से प्रविष्ठ हुए शामिल
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