________________
२३ नन्त थे ? अरे जाई ! ऋषनदेवजी तो राजपुत्र, धर्मावतार, तीर्थकर देव हुए हैं, अर्थात् अन्होंने राज को त्याग और संयम को साध, निर्विकार चित्त-निज गुण रमण-आत्मानन्द पाया; तब अन्तःकरण की शुध्धिारा ईश्वरीय ज्ञान प्रकट हुआ, जिसके प्रयोग से जन्होने जाना और देखा कि, शुद्ध चेतनपरमात्मा परमेश्वर नी ऐसे ही सर्व दोष रहित-सर्वदा आनन्द रूप है. तब अज्ञान का अन्त होकर, कैवल ज्ञान प्रगट हुआ, लोकालोक, 'जम-चेतन, सुम-स्थूल, सर्व पदार्थों को प्रत्यक्ष जाना; अर्थात् सर्वज्ञ हुए. फिर परोपकार के निमित्त, देश देशान्तरों में सत्य उपदेश करते रहे; अर्थात् ईश्वर सिह स्वरुप ऐसा है-और जीवात्मा का स्वरुप एसा है-और जम पदार्थ परमाणु आदि का स्वरुप ऐसा है और इनका स्वभाव जम में जमता, चेतन में चेतनता, अनादि है-और