________________
चिन्त्य; असंख्य; आयं अर्थात् सब से प्रथम जदांतक बुद्धि पहुंचावें तुम्हें पहिले दी । पावें अर्थात् अनादि; ब्रह्मा ईश्वर अर्थात् ज्ञान आदि ऐश्वर्य का धारक, सब से श्रेष्ठ अर्थात् सब से उच्च पदवाला; अनन्तम् जिसका अन्त नहीं, अनंगकेतु-कामदेव-विकाबुद्धिके प्रकाश रुपी सूर्य को ढकने घाला केतु रुप जीस्का ज्ञान है; योगीश्वरम् विदित हुआ है योग स्वरुप जीनकु; अनेकमेकम् अर्थात् परमेश्वर एक नी है, और अनेक जी है; नावत्वं एक, व्यत्वं अनेक; अर्थात् इश्वर पदमें द्वैत नाव नहीं, ईश्वर पद एक ही रूप है. इत्यादि नामों से तथा ज्ञान स्वरूप और निर्मल रूप कीर्तन करते है.
आरियाः-यह तो मानतुङ्गजी ने ऋषन देव अवतार की स्तुति की है, सि अर्थात् ईश्वर की तो नहीं?
जैनीः ऋषनदेवजी क्या अनादि अ