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. ? ចុច समय मर क्यों न गये ? और ४३२ पृष्ठ के नीचे लिखता है कि जो वेदों से विरोध करते । हैं उनको जितना दुःख होवे उतना थोमा है. अब देख तेरे दयानन्दने अन्य मतों पर कैसी दया करी ? होय ! अफसोस! अपनी मंजी. तले सोट्टा नहीं फेरा जाता. यथा.
दोहा. , आप तो सोध्या नहीं, सोधे चारों कूट; . बिल्ली खेद पमौसियां, अपने घर रहो कंट.
फिर कहने लगा कि,अजी! यह क्या बात है हमारे 'सत्यार्थप्रकाश' के ४६२ पृष्ठ में दयानन्दजी लिखते हैं कि जैनी लोग अपने मुखसे अपनी बमाई करनी और अपने ही धर्म को वमा कहना; यह बमी मूर्खता कीवात है. तव हमको जरा हंसी आ गई और कहा कि नला तुमारा दयानन्द तो अपने जाने हुए धर्म को गेटा कहता होगा! और औरों को वमा कहता होगा ! अरे नोले ! 'सत्यार्थप्र