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पता काश' को आंख खोल कर देख, और बांच, कि इसमें प्रत्येक मतानुयायी पुरुषों को अक्ल के अन्धे, चांमाल, पोप, आदिक अपशब्द कह कर अर्थात् गाली आदि दे कर लिखा है. खैर, चला तुम हमको एक यह तो बताओ कि तुम्हारे दयानन्द का ईश्वर साकार है वा निराकार ? और सर्वव्यापक है चा एकदेशी है ? तब उसने उत्तर दिया कि निराकार और सर्वव्यापक है. तो हमने पूग कि, तुम्हारे ईश्वर वात करता है वा नहीं ? तब उसने हंस कर कहा कि कनी निराकार जी बोल सकते हैं ? हमने कहा कि बस! अब तेरी नक्त दोनों वातों का दम खमन करते हैं. दख, 'सत्यार्थ प्रकाश' के सातमे समुल्लास सब के 2G पृष्ट के नीचे की दवी पंक्ती में लिखते हैं, कि ईश्वर सब को उपदेश करता है, कि दे मनुष्यों ! मैं सब का पति हूं, में ही सब को धन देता हूं और भोजन