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. १०७ हमने उत्तर दिया, कि जैनियों की दया तो सर्वत्र प्रसिदै. देखो 'इम्पीरीयल गैजेटियर' हिन्द जिल्द ठी दफादोयम, सन् १७७६ के २५ए पृष्ठ में ऐसा लिखा है, कि जैनी खोग एक धनाढ्य फिरका है अमूमनथोक फरोशी और दुमी चिही के कारोबार करते हैं, बल्के आपस में बमामेज जोल रखते हैं. यह लोग बमे खैरायत करने वाले हैं. और अक्सर हैवानों की परवरिश के वास्ते शिफाखाने वनवाते हैं, इति. परन्तु तुम सरीखे बोले लोगों के मत गुमान रूपी रोग से विद्या रूपी नेत्र मीच हो रहे हैं. तांते औरों के तो अनहोते दुपण देखते और अपने होते दूषण जी नहीं देखते. इसी 'सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास के ३५६ पृष्ट की ५ वीं वा उही पंक्ति में दयानन्दजी क्या लिखते हैं ? कि इन जागवत आदि पुराणों के बनाने वाले क्यों नहीं गर्न ही में नष्ट हो गये ? वा जन्मते ही