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JALA
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Navara
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१० ... कल्प काल पर्यन्त कल्प के आदि में ईश्वर सृष्टि रचता है तब सब जीव मुक्ति से सृष्टि पर भेज दिये जाते हैं. फिर वह शुन्न और अशुभ कर्म करने लग जाते हैं. यह सिललिलायों ही अनादि से चला आता है.
समीक्षा:-जलाजी ! यह मुक्ति हुई वा मजदरों की रात हुई ? जैसे दिन जर तोमजदूर मजदूरी करते रहे, रात को फावमा टो-' कही सराहणणे रख कर सो गये, और प्रातः उठते ही फिर वही हाल! परन्तु एक और .. नी अन्धेर की बात है कि जब कल्पान्त समय , सब जीवों का मोद हो जाता है, तो जो कसाई आदिक पापिष्ट जीव हैं उनको तुम्हारे , पूर्वोक्त कथन प्रमाण बमा लान रहता है. क्यों, कि तुम्हारे परमहंस आदि धर्मात्मा पुरुष तो बडेश् कष्ट सन्धा, गायत्री, यज्ञ, दोन, समाज, वेदान्यास आदि परिश्रम द्वारा मुक्ति प्राप्त करते हैं; और वह कसाई आदि महापापी