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. पुरुष गोवधादि महाहिंसा और मांस नदणादि अथवा परस्त्रीगमनादि अत्याचार करते नी कल्पान्त में सहज ही अनायास मुक्ति प्राप्त करते हैं. अब नेत्र जघाम कर देखो कि तुम्हारे उपदेश के अनुकूल चलने वाले पूर्वोक्त परमहंत आदिकों की क्या अधिकता रही ?
और उन पापिष्ठों की क्या न्यूनता रही? क्यों कि विकल्प के अन्त में क्या सन्यासी क्या कसाई सब को एक ही समय मुक्ति से धक्के मिल जायेंगे. और इसी कर्तव्य पर ईश्वर को न्यायकारी कहते हो? बस, जो मदा मुढ होंगे वह ही तुम्हारी कही मुक्ति को मानेंगे. . . आरियाः-हांजी, समाजियों में तो ऐसे ही मानते हैं परन्तु हां इतना नेद तो है कि जैसे बारद घण्टे का दिन और बारह घण्टे की रात्रिसो धर्मालाओं को तो कुछ घण्टा दो घण्टा पहिले मुक्ति मिल जाती है और पापी आदिक सब जीवों को बारह घण्टे की
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-ARMATAamamalin