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जुगताने में राजा की नजीरें देते हैं, उनका कहना कैसा कि मिथ्या, जिस प्रकार से राजा च्यादिक कर्मों के फलों में दखल नहीं दे सकते उसी प्रकार ईश्वर जी पूर्वोक्त राजा की तरह कर्मों के फल में दखल नहीं दे सकता.
प्रारिया:- तुम ही बताओ कि पूर्वोक्त कर्म क्या होते हैं ? और झानादिक क्या होते हैं ? और मुक्ति क्या होती है ?
जैनी :-- हां, हां, हम बतावेंगे. कर्म तो परगुप्त व्यर्थात् जन गुरु, काम क्रोधादिक के प्रभाव से विषयार्थी हो कर हिंसा, मिथ्यादि
समारंच करने से व्यन्तःकरण में मल रूप पूर्वोक जमा हो जाते हैं, उनका नाम और ज्ञान आदि निज गुरु ग्रर्थात् चेतन गुणं स्वाध्याय ध्यान यदि अभ्यास कर के प्रनांदि अज्ञान का नाश हो कर निज गुण के
प्रकाश होनेका नाम है. और सुक्ति पूर्वोक्त परगुण अर्थात् कर्म के बंध से मुक्ति पाने