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१७४ . अर्थ:-जिस कर्म ने ब्रह्मा को कुम्हार । की न्याई निरन्तर ब्रह्माएक रचने का हेतु बनाया, और विष्णु को वारश् दश अवतार ग्रहण करने के संकट में माला, और रुद्र को कपाल हाथ में ले कर निदा मांगने के कष्ट में रका, और सूर्य को आकाश में नित्य भ्रमण के चक्र में माला, ऐसे इस कर्म को प्रमाण है! अब इससे सिहआ कि ब्रह्मा
आदिक सब कर्मों ही के आधीन हैं, और कर्मों के फल जुगताने में कोई नी समर्थ नहीं है. यथा दृष्टान्तः-किसी एक नगर में एक धनी के घर एक पुत्र उत्पन्न हुआ. जव वद पांच वर्ष का हुआ तो कर्म योग जस की आंखें विमारी हो कर बिगम गई, अर्थात् अंध हो गया. तब स साहुकार ने वैद्य वा माक्टरों से बहुत इलाज करवाये परन्तु अच्छा न हुआ. तब वह शाहूकार अपने नाई वा पञ्चों के पास गया, कि तुम पञ्च ब