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________________ १७३ . आरियाः-हम तो सब को कर्म और कर्म का फल ही समऊ रहे हैं.. जैनी:-तब तो तुम्हें यह भी मानना पमेगा कि ईश्वर जी किसी कर्म का फल जोग रहा है, और फिर कर्म हवाले दोने से कर्म फल लोग के ईश्वर से अनीश्वर , दो जावेगा. और जो अब ईश्वर दम देना, जीवों को सुखी दुःखी करना सृष्ठि बनानी, और संदार करना, आदिक नये कर्म करता है, उनका फल आगेको किसी और अवस्था में जोगेगा; क्यों कि नर्वदरिजी अपने रचे हुए 'नीतिशतक' में जी लिखते हैं: (श्लोकः) ब्रह्मा येन कुलालवनियमितोब्रह्माएमनाएकोदरे। विष्णुर्येन दशावतार ग्रहणे दिप्तो महासंकट। रुद्रो येन कपालपाणिपुटके निदाटनं कारितः। सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मैनमः क मणे ॥१६॥
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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