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होगी, क्यों कि यह क्रम तो अनादि अनंन्त सृष्टि आदि का चला आता है, अब विचार कर देखो, कि यह तुम्हारे मत में मोद ( नय्यात) काहे की हुई ? यह तो और योनियों की चान्ति यवागमन ही रही. परन्तु तुम सीधे यों ही क्यों नहीं कह देते कि मोक्ष कुछ वस्तु ही नहीं है ? क्यों किं तुम्हारा दयानन्द जी 'सत्यार्थ प्रकाश' १९५४ के पृष्ट पंक्ति १२ में मुक्ति को कारागार अर्थात् कैदखाना लिखता है कि उमर कैद से तो योने काल की कैद, हमारे वाली दी मुक्ति अच्छी है. अब देखिये कि जिन्होंने मोद को कारागार समजा है वह क्या धर्म करेंगे ? इन नास्तिकों का केवल कथन रूप ही धर्म है. यथा वेदों का सार तो यज्ञ है. और यज्ञ का सार वायु ( दवा) की शुद्धि. यथा दशोपनिषद् जापान्तर पुस्तक स्वामी अच्युतानंद कृत गपा मुंबई सम्बत् १९५२
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