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________________ १७० मिथ्या लेख रूप पुस्तकों पर श्रद्धा कर धर्म के अजान पुरुष कैसे आंख मीच कर ____अविद्यासागर में पतित हो रहे हैं! . ॥१४ वां प्रश्न॥ - आरियाः--सर्व मतों का सिद्धान्त मोद है. सो तुम्हारे मत में मोद को ही ठीक नहीं माना है. जैनी:-किस प्रकार से ? आश्यिाः --तुम्हारे मुक्त चेतन अर्थात् सिक परमात्मा एक शिला पर बैठे रहते हैं, जमरकैदी की तरह. जैनी:--अरे नोले! तुम मोद को क्या जानो ? क्यों कि तुम्हारे नास्तिक मत में तो मोक्ष को मानते ही नहीं हैं; क्यों कि मोद से फिर जन्म होना अर्थात् वार मोद में जाना और वापिस आना मानते हो, तब तो तुम्हारे कथनानुसार जीवों को अनन्त ___ वार मोद हुई होगी, और अनन्त वार
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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