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का उसमें रहदारण्यकोपनिषद् भाषान्तर प्रथम अध्याय के २३३ पृष्ठ की 6 वी ११ पंक्ति में लिखा है, कि अश्वमेध यज्ञ सब यशों में से बमा यज्ञ है, तिसका फल नी संसार ही है; तो अग्निहोत्रादि का तो कहना दी क्या ? बस ना कुब त्याग, न वैराग्य, न धर्म, न मोद.
आरियाः-मुक्ति नी तो किसी कर्म ही का फल है. सो कर्म अब्धि (दद) वाले होते हैं. तो फिर कर्म का फल मुक्ति नी अ. ब्धि वाली होनी चाहिये.
जैनी:-दाय ! अफसोस ! देखो, मुक्ति को कर्म का फल मानते हैं ! नला, यह तो बताओ कि मुक्ति कौन से कर्म का फल है ? __ . आरियाः--शान का, संयम का, तप का, और ब्रह्मचर्य का.
जैनी:-देखो, पदार्थ ज्ञान के अज्ञ (अज्ञान) ज्ञान आदि को कर्म बताते हैं !.