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चार हजार कोस का शरीर होता है. और बेइन्श्यि शंख, कौमी, जूं आदिक का शरीर अ. "तालीस कोस का स्थूल होता है. यह गप्प,
है वा सत्य? ... जैनीः यह गप्प है, क्योंकि जैन शास्त्रों में दसदजार कोस का योजन और अठतालीस कोस की मोट्टी जूं कहीं भी नहीं लिखी है. जैन सूत्र 'समवायांग', 'अनुयोग झार' में एक जौं की मोटाई में आठ यूका आवें इतना प्रमाण लिखा है. परन्तु यह लेख तो केवल दयानन्दजी की मूर्खता का सूचक है. क्यों कि हम लोग तो जानते थे कि दयानन्दजी ने जो जो मतमतान्तरों की हैं उनके शास्त्रों के प्रमाण दे दे कर सो ठीक ही होवेंगी, परन्तु तुम्हारे कहने से और 'सत्यार्थ प्रकाश' के देखने से प्रतीत हुआ कि शास्त्र सूत्र कोई नहीं देखे होंगे, केवल सुने-सुनाये ही क्षेष के प्रयोग से गोले गराये हैं. यदि