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होता है. और ग्रंथकारो ने ग्रंथों में सूत्रों से विरुद्ध न्यूनाधिक बातें लिख धरी हैं. यथा वेदानुयायी सूत च्यादिकों नें वेद विरुद्ध पुराणों में कई गौ कथा प्रादिक लिख धरे हैं. उनही पुराणों के गपौमों के प्रयोग से दुत वादियों से पराजय हो कर बहुत से ब्राह्मण और वैष्णवों ने अपने ब्राह्मण धर्म को बो कर अपने आपको अर्थात् ब्राह्मणों को पोप कदानें लग गये हैं. ऐसे ही कई एक जैनी लोग जैन सूत्रों के अइ ग्रन्थों के गपौडों के प्रयोग से पराजय हो कर अपने सत्य धर्म से ऋष्ट हो गये हैं.
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आरियाः प्रजी, दमारे दयानन्द कृत सम्बत् १९५४ के बपे हुए 'सत्यार्थ प्रकाश' के बारहवें समुल्लास के ४५.३ पृष्ठ में लिखा हैं कि जैनियों के 'रत्नसार ग्रंथ' के १४८ पृष्ठ में ऐसा लिखा है कि, जैनियों का योजन १०००० दस हजार कोस का होता है. ऐसे
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