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१६५ दिक ग्रंथों से उक्त कथन प्रतीत हो जाता है. ॥ १३ वां प्रश्न ॥
प्रारिया:- तुम्हारे जैन शास्त्रो में मनु व्यं यादिकों की प्रायु (अवगहना) यदि. बहुत लम्बी कही है सो यह सत्य है, वा गप्प है ?
जैनी:- जो सूत्रों में लिखा है सो सब सत्य है, क्यों कि यह गणधर कृत सूत्र त्रिकालदर्शी महापुरुषों के कहे हैं. और प्रतीत, प्रनागत, वर्त्तमानकाल अनादि प्रवाह रूप अनन्त है, किसी काल में सर्पिणी उत्सर्पिणी काल के प्रयोग से बल, धन, वायु,
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गहना प्रादिकका चढाव होता है, और कमी अंतराव होता है, अर्थात् हमारे वृद्धों के समय में सौर वर्ष की प्रत्युत सौ से जी अधिक प्रायुवाले पुरुष प्रायः दृष्टिगोचर हुआ करते थे, और अब पचास बर्ष की प्रायु होते ही कुटुम्बी जन मृत्यु के चिन्तक
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