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________________ 1-3 के होने के कारण दयानन्दियों ने प्रयुक्त जान कर कितने एक बस पुस्तक में से निकाल जी दिये हैं. (६) श्री शंकराचार्य, वे - दानुकूल वैदिक हिंसा को निर्दोष कहते हैं - यत् प्रश्वमेधादिक यज्ञ में पशुओं का बध करना योग्य कहते हैं. जैसे, पूर्वकाल में जैनी और बौधों ने हिंसा की निन्दा करी, तो उ-: नके साथ बहुत क्लेश किया, उनके शास्त्र जी म्बो दिये और जला दिये. (घ) वामी, वेदानुकूल वाममार्ग का पालन करते हैं. (G) - जानक वेदों को धूर्तों के बनाये हुए कहते हैं. ¿ + (ए) मैक्समूलर पति माक्टर वेदों को प्रज्ञानी पुरुषों के बचन कहते हैं: (१०) जैनसूत्र श्री 'उत्तराध्ययन जी' २५ वें अध्ययन में जयघोष ब्राह्मण अपने भाई विजयघोष से कहते थे: "सब्जे वेया पशुवाः" अर्थात् वेदों में तो पशुवध करना लिखा है. और 'नन्दीजी'
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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