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का ध्यान करते हैं. (३) ब्राह्मण वेदानुकुख . क्रियापूर्वक श्री सीतारामजी की मूर्तिका पूजन
करते हैं: (३) शैव वेदानुकूल श्रीशंकरजी का लिङ्ग अर्थात् पिएकी का पूजन करते हैं. और यह पूर्वोक्त मतानुयायी देव और देवलोक स्वर्ग वा नर्क आदि स्थान का होना वेद प्रमाण से सि६ करते हैं और मुक्ति से फिर लौट कर नहीं आना कहते हैं. (१) परमहंस वेदानुकूल मूर्तिपूजन आदि का खाकन करते हैं और एक ब्रह्म सर्वव्यापी आकाशवत जमरूप मानते हैं और परमेश्वर, जीव, खोक, परलोक, बंध, मोद आदिक की नास्ति कहते हैं. (५) मनुजी वेदानुकूल श्राशादि में मांस, मदिरा आदि का पितृदान करना 'मनुस्मृति' में लिखते हैं, जिस स्मृति के दयानन्दजी ने जी 'सत्यार्थ प्रकाश' नामके अपने रचे हुए पुस्तक में बहुत से प्रमाण दिये हैं. फिर लोगों की ओर से पराभव और घृपादृष्टि
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