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44 makwhatsaadiwakendhi
रथाए खुले जाजरूर ! अपितु सत्य ही है, कि निन्दक जनों के हृदय और मुख जाजरूरसदृश ही होते हैं, नतु यों लिखना चाहिये था कि सार पदार्थयुक्त नाजन का मुख बांधा जाता है, खाली का खुला रहता है. अर्थात् केसर कस्तूरी के मिब्बे वा घृत खांग आदि के ना. जन के मुख बन्द किये जाते हैं. और असार
आदिक के नाजन खले ही पडे रहते हैं. इन समाजियों में एक और नीविशेषता है कि प्रत्येक गुणी (विज्ञान) से विवाद करना, विनय नहीं, नक्ति नहीं, अर्थात् जो बात आपको तो न आती हो और नसी पर फट प्रश्न कर देला, वद यदि पूरे कि तुम जी जानते हो, तो कहना कि हम तो पूउने को आये हैं, फिर वदं ज्ञान की और गुण की बात कहें तो उस गुण रूपी दूध को अपने कांजी के वर्तन में माल कर खट्टा कर के फाम देना, अर्थात् और दो तरह समझलेना,
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