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२५७ घर से निकल नागता है; परन्तु घरके ? नेका वा दग्ध होने का दुःख तो बहुत ही मानता है. इसी प्रकार से जीव के अमर होने पर, जी इसकी देह से अलग करने में बमा पाप होता है. चाहे बाफ से ो चाहे तलवार से हो. तांते जीवरदा करना सदैव सब को योग्य है. और पञ्चम बार सं. २५४ के उपे हुए 'सत्यार्थ प्रकाश' के नए पृष्ठ कीर४ वीं पाक में लिखा है कि पट्टी बांधने से दुर्गन्धि नीअधिक बढती है, क्यों कि शरीर के नीतर - गन्धि नरी है, शरीर से वायु जुर्गन्धियुक्त प्रत्यद है, रोका जावे तो पुनन्धि नी अधिक बढ जावे, जैसा कि वन्ध जाजरूर अधिक दुर्गन्धयुक्त और खुला हुआ न्युन उर्गन्धियुक्त होता है. अब देखिये, जैनियों की निन्दा के लिये अपने मुख जी मूढों ने जाजरूर (विष्ठा के स्थान ) बनाये ! यथा पट्टी बांधनेवालों के मुख बंध जाजरूर, और खुले मुखवालों के