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१५ ताजी को आद्योपान्त बांच कर देख लो, परमार्थ नास्तिकों वाला ही निकलेगा, कि आत्मा
आकाशवत् है. परन्तु पूर्वोक्त यथार्थ ज्ञान तो यह है कि यदि जीव अमर है तो जी प्राणों ही के आधार से रहता है, यथा जैन शास्त्रों में जीवहिंसा का नाम 'प्राणातिपात' कहा है: प्राणानां अतिपातः अर्थात् प्राणों का लूट लेना, श्सीका नाम जीवहिंसा कहा हैं. अर्थात् प्राणों से न्यारा होने का नाम ही मरना है, - यथा दृष्टान्तः... पुरुष घर के आधार रहता है. जब घर , की जीत टूट जाय तो घर बाले की बाहू तो नहीं टूट गई, परन्तु घरवाले को कष्ट तो मानना ही पझेगा, कि मेरे घर की जीत गिर गई, मेरे काम में हर्ज है, इसको चिनो, तथा घर गिर एमा, वा किसीने ढा दिया, वा फूंक दिया, तो घरके डैने से वा फूंक हो जाने से क्या घर वाला मर जाता है ? अपितु नहीं,