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में ला कर अपने शस्त्र छोड़ दिये, तवं नी कृष्णाजी ने कहा, कि बीर पुरुषों का रोझुमिमें छा कर शास्त्र का त्याग करना धर्म नहीं हैं. अर्जुनजी बोले कि, लगवन् ! मैं कायर नहीं हूं. मुझे तो अपने इन स्वजनों की तर्फ देख कर दया आती है, और इनका बध करना मेरे लिये महान् दोषकार है. तब श्री कृष्णजो कहते नये कि हे अर्जुन! इनके भारने में तुझे कोई दोष नहीं हैं.क्यों कि यह आत्मा तो अमर है यथा:
श्लोक. नैनं विन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं वोदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥२३॥ . इसी वर्णन में गीता समाप्त कर दी. जिसका सारांश यह निकला कि अर्जुन का चित्त जीवहिंसा की घृणा से रहित दुश्रा,
और खूब तीक्षण तेग चलाई और कौरव कुल को दय कर दिया. तुम अच्छी तरह से गी