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२५४ समुल्लास और ४० पृष्ठ पर जैनी साधुओं के लक्षण लिखे हैं:स रजोहरण नैक्ष्य, जुजोबुञ्चितमूर्धजाः श्वेताम्बराः क्षमाशीलाः, निस्संगा जैन साधवः ॥
- और ४७१ पृष्ट की ग्यारहवीं पंक्ति में लिखा है, कि यति आदिक नी जब पुस्तक बांचते है तब मुख पर पट्टी बांध लेते हैं, और फिर उसीकी पन्हवीं पंक्ति में लिखा है कि यह उलिखत बात विद्या और प्रमाण से अयुक्त है, क्यों कि जीव तो अजर अमर है, फिर वह मुख की बाफ से कली नहीं मर सकते, इति.
जैनी:-बाद जी वाह ! वस इसी कर्त्तव्य पर आर्य अर्थात् दयाधर्मी बन बैठे हो? जला यदि बाफ से नहीं मर सकते, तो क्या तलवार से मर सकते हैं ? अपितु नहीं. तो फिर खङ्गादि धारा मारने में ली दोष नहीं होना चाहिथे. परन्तु “अहिंसा परमो धर्मः” और