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खामेभी सवे जीवा सचे जीवा खमंतु मे वित्ति मे सवे नएलु वैर मन न केणयो॥.
परन्तु दया तो पूर्वोक्त अनाथ जीवों की ही होती है, जो सर्व प्रकार से लाचार हैं, जिनका कोई सहायक नहीं, और घर को. नहीं, इन्द्रियहील, बलहीन, तुच अवस्था वि कलेन्द्रिय, इत्यादि. क्यों कि पशु आदि बमें जीवों की हिंसा सें, तो जैनी आर्य आदिक कुलों में पूर्व पुण्योदय से प्रथम हो रुकावट है, ननको तो पूर्वोक्त मेहे जन्तुओं की रक्षा का ही उपदेश कर्तव्य है, जिसले बोमे पाप के अधिकारी जो न बनें तो अच्छा है, परन्तु चह समाजो लोग (दयानन्दी) किमी शान परजी शिकायत करते हैं। प्रत्येक मत की, या प्रत्येक शास्त्र की निन्दा, दुजात छादि करने सदा तरलर रहने, यत्रा सम्वत १४ के हुनसत्यान्न प्रकाश के पार
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