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(ख्याल) चित्त में दृढ हो जाता है. यही विशेष कर मत फैखने का कारण है. परन्तु यह दोष तुमारे लोगों का ही है. क्यों कि अपने बच्चों को न तो प्रथम अपनी मातृनाषा अर्यात् संस्कृत विद्या वा दिन्दी पढाते हो, और नाही कुछ धर्म शास्त्र का अभ्यास करवाने हो. प्रथम ही स्कूलो में अंग्रेजी फारसी आदि पढने बैग देते हो. देखो स्कूलों के पढे हुए ही प्रायः कर, आर्य समाजी देखे जाते हैं. सो इन वेचारों के न तो देव, और न गुरु, न धर्म, और ना ही कोई शास्त्र का कुछ नियम है. क्यों कि इनके ईश्वर को जी विपरीत (वेढंग) ही मानते हैं, अर्थात् ईश्वर को कर्ता मानने से पूर्वोक्त लिखे प्रमाण से चार दोप प्राप्त कराते हैं. और न इनके कोई गुरु अर्थात साधुटत्ति का कोई नियम है. जो चाहे सो उपदेशक वन वेचता है. और गली में पुस्तक हाथ लिये मनमाने गपोमे हांकना है
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