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कि स्त्रियों का पुनर्विवाह हो जाना चाहिये, -- अर्थात विधवा स्त्री को फिर विवाह दो; क्यों कि: पुराणों में तो, हमने जी लिख देखा है कि पि- . बले समय में ब्राह्मणों के कथन से विधवा स्त्री का देवरादिकों के साथ करेवा हो जाता था, परन्तु पुनर्विवाह नहीं होता था, और अब वर्तमान काल में भी कईएक जातियों में ऐसे ही देखने में आता है; इत्यादि. और न कुछ हिंसा मिथ्यादि त्याग रूप और जप तप वैराग्य आदि धर्म है. क्यों कि यह जो कहते : हैं कि हमारे वेदों में लिखा है, “अहिंसापर- : मोधर्मः माहिस्याः सर्व नूतानि" अर्थात् कीटिका से कुञ्जर (हस्ती) पर्यन्त किसी जीव को मत सताओ. परन्तु पूर्वोक्त लेख साधु संगति के अनाव से दया की युक्तिधे नहीं जानते हैं. क्यों कि इन बहुलताले नाम और नगरों में देखते हैं. क्या ब्राह्मण, क्या क्षत्रिय,, वैश्य, शूद्र, क्या समाजी, क्या अन्य मता: