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रजव बैंमा सारका, ऊपर जरयो सार; राहस्थी के गृहस्थी गुरु कैसे उतरें पार?"..
प्रश्नः-ललाजी, तुमारी बुद्धि के अनु. सार यह आर्यसमाज नाम से जो नया मत निकला है सो कैसा है ? क्यों कि इनके नी तुम्हारी मान्ति दया धर्म मानते हैं, और मधुमांस का सेवन करना जी निषेध करते हैं.
और थोमे ही काल में कई लाखों पुरुष 'श्रारिया' कहाने लंग पके हैं. .:. उत्तरः-कैसा क्या? यह दयानन्दजी ने ब्राह्मणों से विमुख दो कर 'सत्यार्थ प्रकाश नाम से पुस्तक, जिसमें पुराणादि ग्रंथो के "दोष प्रकट किये, और अन्य मतों की निन्दा
आदि इकट्ठी कर के बनाया, जिसको प्रत्येक स्थान स्कूलों में पढाने की अक्क्षमन्दी
की, क्यों कि कच्चे वरतन में जैसी वस्तु जरो • उसकी गन्धि (बू) हो जाती है अर्थात् ब___..चपन से जैसे पढाया जाता है, वैसे ही संस्कार