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को किस प्रकार से माना है ?
जैनी:-श्रीमत् आचाराङ्गजी के अध्ययन पांचवें, उद्देशे के के अन्त में एसा पाठ है:-.
गाथा. ____ "न काऊ, न रूहे, न संगे, न इत्थी, न पुरुसे, न अन्नदा परिणे, सन्ने, उवमाण धिजाइ, अरुवी सत्ता, अपय सपय नत्थी, न सद्दे, न रूवे, न गंधे, न रसे, न फासे, इच्चे तावती तिबेमि" ... . . जिसका अर्थ यह है कि, मुक्त रूप ए.. रमात्मा अर्थात् सिइ जिसको (न काळ) काय नहीं अर्थात् निराकार, (न रूहे) जन्म मरण से रहित अर्थात् अजर अमर, (न संगे) राग द्वेषादि कर्म का संग रहित अर्थात् वीतराग सदैव एक स्वरूपी आनंद रूप, (न इत्थी न पुरूसे) न स्त्री, और न.पुरुष उपलक्षण से, न क्वीव,(न अन्नहा परिणे) न