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ही है जिसकी अन्यथा प्रज्ञा अर्थात् विस्मृति नहीं, अल्पज्ञ नहीं, (सन्ने) झानसंझा. अर्थात् केवलज्ञानी सर्वज्ञ, (उवमाण विऊर) - पमा न विद्यते अर्थात् इस संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं कि जिसकी जपमा ईश्वर को दी जावे, (अरुवीसत्ता) अरूपीपन, (अपय सपयनत्थी) स्थावर जंगम अवस्था विशेष नत्थी, (न सद्दे) शब्द नहीं, (न रूवे) कोइ रूप विशेष नहीं अर्थात् श्याम, श्वेत आदि वर्ण नहीं, (न गन्धे) गन्धि नहीं, (न रसे) म धु, कटु आदि रस नहीं, (न फासे) शीतोषणादिक स्पर्श नहीं, (इच्छे) इति, (ताक्ती) ३त्यावत्, (तिब्बेमि) ब्रवीमि-कहता हुं..
आरियाः-यह महिमा तो मुक्त पद की कही है, ईश्वरकी नहीं. .
जैनी-अरे नोले! मुक्त है सो ईश्वर है, और ईश्वर है सो मुक्त है. . इस स्थानमें मुक्त नाम ईश्वर का ही है,