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१३. महारंजयाए:-महा खोटा वणिज, दाम चांम आदि पन्द्रद कर्मादान (मदा परिग्गंहाए) महावृषणा अर्थात् कसाई आदिकों को विआजू द्रव्य देना, (पचिंदिय वदेणं) पञ्चेन्क्ष्यि जीव का वध करना, (कुणमादारेणं) मांसाहारी मधु मांस के खानेवाला, इन पूर्वोक्त चार कर्मों के करनेवाला नर्क में जाता है, और दशमांग प्रश्न व्याकरण षष्ठ अध्ययन प्रथम संन्नर छारे जैन साधु के अ-. धिकार में सूत्र लिखा है, "अमजे मंसासणे हिं" अर्थात् साधु मद्य, मांस, रहित आहार करे, ऐसे कहा है. तां ते जो आचारांगजी के दशवें अध्ययन में कहा है, “बहु अहिएणं मंस मच्छेण उ, उवणि मंत्तेजा" सो सब यह फलों के नाम हैं. वहां मांस नाम से फलका दल, और अस्थि नाम से फल की गुठली; क्यों कि सूत्र जीवानेगमजी में वा सूत्र प्रज्ञापनजी में प्रथम पद वनस्पति के अधिकार में