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जी प्रत्यक्ष प्रमाण है, कि जिस प्रकार से अन्य मतावलम्बी जनों के अर्थात् कुसंगीपु. रुषों के मुकदमें सर्कार में खून, चोरी, परनारी हरण आदि के आते हैं, ऐसे जैनी लोगों में से अर्थात् जो साधुओं के उपासक हैं, कदापि न आते होंगे, कोई तकदीरी अमर की बात कही नहीं जाती.
पृच्छक-अजी! हमने सुना है कि जैन शास्त्रो में मांसलक्षण भी कहा है ..
उत्तरः-कदापि नहीं. यदि कहा होता तो अन्य मतानुयायी लोगों की नान्ति जैनी पुरुष नी खूब खाते, यह अपना पूर्वोक्त मन तन क्यों मोसते ?
प्रश्नः-रजगवती जी सूत्र शतक पन्द्रहवें में सीहां अनगार ने रेवती श्राविका के घरसें महावीरजी को मांस ला कर दिया है, और श आचाराङ्गजी के दशवें अध्ययन में मत्स्य-मांस साधु को दिया लिखा है और