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१३४ निर्नय पालते हैं; और यह जो पूर्वोक्त साधु बिना दाम, बिना दवाव पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, जहां उन्हों के तप संयम साधन - त्तिका निर्वाह हो सकता है तहांश देशान्तरों, में नग्नपाद,(विना सवारी)पुरुषार्थ कर के विचर ते हुए धर्मोपदेश करते रहते हैं. जो इजूरी हुक्म पूर्वोक्त धर्मावतार जैनाचार्यों ने फर्माया है, सो क्या, कि हे बुद्धिमान् पुरुषो! ? त्रस, आदि जीवों की हिंसा मत करो, २.गरीवों को मत सताओ, ३ पशुओं पर अधिक जार मत लादो,४ मिथ्या सादी [गवाही] मत दीजो ५ झुग दावा मत करो०६ तस्करता मत करो, ७ राजाकी जगात [महसूल] मत मारो, ७ परनारी वा परधन को मत दो, इत्यादि.और इन साधुओं के उपदेश द्वारा ही जैनी लोग जूं, लीख तक की जी दिसा नहीं करते हैं, और पूर्वोक्त नियमों का पालन भी सत्संगी बहुलता से करते हैं, और इसमें यह
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