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ध रूप उपकारी दोगा.. , इस ग्रंथ में ईश्वरको कर्ता अकर्ता मा. नने के विषय में १५ प्रश्नोत्तर हैं, जिनमें ईश्वर को कर्त्ता मानने में चार दोष दिखाये गये हैं, और कर्म को कर्त्ता मानने के विषय में पदार्थज्ञान अर्थात् जीवका और पुद्गल का स्वरुप संदेप मात्र युक्तियों से स्पष्ट रीति से सिद्ध किया गया है. और जो वेदानुयायी पकित ब्राह्मण, वैष्णव आदिक हैं वह तो आवागमन से रहित होने को मोक्ष मानते हैं; परन्तु जो नवीन वेदानुयायी 'दयानन्दी वर्ग हैं वद मोद को नी आवागमन में दी दाखिख करते हैं. इस विषय का नी यथामति युक्तियों द्वारा खाएमन किया गया है. इसके अतिरिक्त, यतकिञ्चित् वेदान्ती अबैतवादी नास्तिकों के विषय में २० प्रश्नोत्तर हैं, जिनमें उनही के ग्रंथानुसार द्वैतलाव और आस्तिकता सिद्ध की गई है. ..
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