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षय में है. यथा कईएक मत जैन, बौध, जैमिनी, मीमांसा, कपिल, सांख्य आदिः ईश्वर को कर्त्ता नहीं मानते हैं; और वैदिक, वेदव्यास, गौतमन्याय, ब्राह्मण, वैष्णव, शैव,
आदिक ईश्वर को कर्ता मानते हैं.... - अब ईश्वर के गुण, और ईश्वर का कर्ता होना अथवा न होना, इसका निश्चय करने को, और कुछ मुक्ति के विषय में स्व. मतपरमत के मतान्तर का संदेप मात्रं कथन करने के लिये “ मिथ्यात्व तिमिर नाशक, नाम ग्रंथ बनाने की श्चा हुई. इसमें जो कुछ बुद्धि की संन्दता से न्यूनाधिक वा विपरित लिखा जावे तो सुझ जन कृपापूर्वक उसे सुधार लेवें. ऐसे सजन पुरुषों का बडा दी 'उपकार समझा जावेगा. . . .
यह ग्रंथ आद्योपान्त विचारपूर्वक निपदपात दृष्टि से (With UnprejudicedMind ) अंवलोकन करनेवाले श्रेष्ठ पुरुषों को मिथ्या भ्रम रूप रोगके विनाश करनेके लिये औप