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नों पर बैठ कर अपने ३ पुत्र और मित्रादिकों से कहने लगे, कि देखो! देवदत्त बनिये का पुत्र सोमदत्त कैसा सुपूत है, कैसा कमान
और नेक नीयत है, सो तुम नी ऐसे ही वनो. तब जस कहने वाले और सुनने वालों का चित्त दिल नी उस गुणी के गुणों को तर्फ आसक्त हो आकर्षित (बैंच) हुआ, और नेक हुआ, कि हमको भी ऐसे ही कमान हो कर सुखी होना चाहिये, और उष्ट संगति (खोटों की सोहबत) और खोट्टे कर्त्तव्य को गेम देना चाहिये. इस प्रकार से उनको गणिजनों के गुण गाने, और सुनने से नेक नीयत और नेक चलन वनने से सुख कालान नी दोगा. परन्तु यह सोचो कि उस बनिये के पुत्रने उन्हें क्या सहारा दिया, अर्थात् क्या उस ने तार लेजा था, वा मोदक नेजे थे, वा दाम नेजे थे,वा जय प्रदान किया था,कि तुम मेरी तारीफ करो. अपि तु नहीं,नसे कुठ पर