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२७४ मन्द) है, और जाप नाम नी उसीका है, जो कि विना ही लोन वा नय के केवल अपने चित्त की रत्ति को टिकाने के लिये और अन्तःकरण शुद्ध करने के लिये गुणी के गुणों को याद करे; यथा, किसी एक वणिक पुत्र अथात् बनिये के पुत्र ने देशान्तर कलिकत्ता आदिक में जा कर कान की और वहुत ही नेक नीयत से व्यवहारिक पुरुषों से मिल कर बमी मेहनत से सौदा लेना वा देना, वा ग्राहकों से मोग वोलना, इस नान्ति से उसने वहुतसा इव्य उपार्जन किया अर्थात् कमाया, और अपने पिता का ऋण अर्थात् कर्जा चुकाया, और सत्य बोलना, वों के सामने नीची दृष्टि (नजर) रखनी,
और नाईयों का सत्कार (खातिरदारी) करनी, इस प्रकार से विचरता था. अब उसकी श्लाघा (तारीफ) उस देश के वा अन्य देशों के ( मुल्कों के) बनिये लोग अपनीर उका