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२२१ योग से वनराई प्रफुल्लित अर्थात् आवाद हो जाती है. अब इसमें जो संदेह (शक) होवे सो प्रकट करना चाहिये; न तु सत्य मार्ग को स्विकार (ग्रहण) करना चाहिये. आगे अपनी बुद्धि के आधीन (अख्तियार) है.
ए वां प्रश्न. आरियाः-जो आपने कहा सो तो सत्य है; परन्तु यदि ईश्वर को सृष्टि का कर्त्ता न मानें तो ईश्वर कैसे जाना जावे ? '.
जैनी:-जिस प्रकार से महात्मा ऋषियों ने जाना है, और सूत्रों में लिखा है, जिसका स्वरूप हम प्रथम प्रश्न के उत्तर में लिख आये हैं. और यह युक्ति (दलील) से नी प्रमाण है. हम देखते हैं कि जगत् में एक से एक आदादर्जे के अक्कमंद आदमी हैं, अर्थात् योगीश्वर,साधु, और सतीजन, राजेश्वर, मंत्रीचर, वकील, जौहरी
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