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पूर्व अर्थात् परवा वायु की गर्मी में, पश्चिम अर्थात् पब्वा वायु की सर्दी का जामन खगने से समुर्बम जल का जमाव होना, और जमे हुए जल में वायु की टक्कर लगने से अग्नि का उत्पन्न (पैदा) होना अर्थात् बिजली का चमकना फिर ढलाव दो कर दवा से मिल कर गर्जाट का होना, और बारिश का होना,जल रूप घटा में सर्य की किरण मुकाबले पर, अर्थात् पूर्व को घंटा पश्चिम को सूर्य, वा पश्चिम को घटा
और पूर्व को सूर्य, इस प्रकार पमने से आकाश में पञ्च रङ्ग धनुष का पमना, इत्यादि यह सिल सिला प्रवाह रूप अनादि नाव से दि चला आता है.हां, पूर्वोक्त देशकाल के प्रयोग से कन्नी कम और कनी जियादा आवादी हो जाती है, जैसे देमन्त ऋतु (सर्दी के मौसम) में सर्दी (खुश्की) के प्रयोग से वनराई के पत्र जम कर प्रलय अर्थात् उजाम हो जाती है, और वसन्त (मधु) ऋतु में गर्मी तरीके प्र