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कि, पाताला पाताल लख, आकाशां आकाश प्रोमक, ओमकलाल थके वेद कहत इकबात. . परन्तु जैनियों के कहने पर उपहास -(ईसी) करे बिन नहीं रहते हैं. किसीने स
त्य कदा है, कि जल्लू को दिन से ही बैर होता है. यथा जैनी लोग शास्त्रानुकूल कहते हैं, कि जल, आदिकों में जीव होते हैं, तो नपढ़ास करना, और अब माक्टरों ने खुर्दवीन आदि के प्रयोग द्वारा आंखों से देख लिये हैं, कि जल के एक बिन्दु में असंख्य जीव हैं परन्तु सनातन जैनियों में यह बात नहीं है, कि असत्य (झ) बोलने और गालियां देने पर कमर वांध लेवे.
, आरियाः-अजी! तुम सृष्टि को कैसे मानते हो?
जैनी:-इस प्रकार से, कि जब जैन म'तानुयायी और वैदिक मतानुयायी लोग भी इस बात को प्रमाण (मंजूर) कर चुके हैं,