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________________ जी जैनियों पर तर्क करते हैं,कि जैनी जम्बूहीप.में दो चांद और दो सूर्य मानते हैं, और और लोग कई स्थूल दृष्टिवाले नी सुनश् कर विस्मित (हैरान) होते हैं. परन्तु यह खबर नहीं कि दयानन्द उक्त “सत्यार्थ प्रकाश” समुलास आठवें श्४२ पृष्ठ के नीचे प्रश्न लिखते है, कि इतने, बमे २ भूगोलों को परमेश्वर कैसे धारण करता है? ... उत्तरः-अनन्त परमेश्वर के सामने असंख्यात लोक, एक परमाणु के तुल्य नहीं कह सकते, अब देखिये, कि असंख्य. खोक लिखता है, जब कि असंख्य लोक दोंगे तो क्या वह अंधकार से ही पूरित होंगे? अपितु नहीं, असंख्य लोक होंगे तो एक श्लोक में यदी एक चांद, सूर्य भी होगा तो जी असंख्य चांद सूर्य अवश्य ही होंगे. और गुरू नानक सादिवजी अपने बनाये हुए जपजी सादिव की वाईसवीं पौमी में लिखते हैं
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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