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२४ए की पी हुई ५ पृष्ठ १५ पंक्ति में लिखा है, १ आत्मा, २ काल, ३ आकाश, आदि अनित्यत्व नहीं होते, अथोत् शब्द में उत्पत्ति नित्य है, धर्मकत्व विरुद्ध धर्म होने से, यह अनुमान है, कि शब्द अनित्य है.
जैनी:--देखो ! ईश्वर का वादी वेदों को शब्द वत् नित्य कहते हैं; परन्तु यहां शब्द को अनित्य कहा है. दयानन्दजी ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका १२७ पृष्ठ में लिखते हैं, कि जब यह कार्य रूप सृष्टि उत्पन्न नहीं हुईथी, तव एक ईश्वर और दूसरे जगत् कारण, अर्थात् जगत् बनाने की सामग्री मौजूद थी. और, और आकाशादिक कुच्छ न था; यहां तक कि परमाणुनी न थे.देखो! यह क्या बाल बुद्धि की बात है! क्यों कि न्याय तो लिरखता है कि आकाश आदि अनादि हैं. और फिर यह जी बताओ कि जगत् बनाने की सा