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जैनी:-मट्टी तो पहिले दी विद्यमान् (मोजूद) थी, फिर मट्टी ही से घमा बनाया. अपि तु घमेकाकर्ता कुम्हार नहीं है क्यों कि घने का उपादान कारण तोमही ही ही है. हां निमित्त कारण कुम्हार है, सो निमित्तिक तो मिहनती होता है, परन्तु मिहनत नी सप्रयोजन होती है। यदि निष्प्रयोजन मिहनत करे तो मूर्ख कहावे, यथा “ निष्प्रयोजनं किं कार्यम्" इति वचनात्. तो अब कहो कि तुम्हारा ईश्वर सप्रयोजन मिहनत करता है वा निष्प्रयोजन ? अर्थात् ईश्वर पूर्वोक्त मिदनत से क्या लाल उगता है, और न करने से क्या हानि रहती है?
आउः--ईश्वर का स्वन्नाव है, अथवा अपनी प्रजुता दिखाने को.
। जैनी:-निष्प्रयोजन कार्य करने का स्वन्नाव तो पूर्वोक्त मूर्ख का होता है. और प्रजुता दिखानी, सो क्या को ईश्वर का शरीक