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एक रूप हो जावे, पृथग् जाव न रहे; अर्थात् जल वा उग्धादिक को पांच सात पात्रों में काल देवें तो न्यारा हो जाय. फिर एक में कर दें तो एक रूप ही हो जाय, (२) चादर पर्याय पदार्थ वह होता है कि न्यारा हो कर न मिले. यथा काष्ट, पत्थर, वस्त्र, व्यादिक. अर्थात् काष्ट के गेले को चीर कर तख्ते किये जांय फिर उनको मिलावे तो न मिलें; चाहे कोल लगा कर जोरु दो, परन्तु वद वास्तव में तो न्यारे ही रहेंगे. ऐसे ही पत्थर, वस्त्रादिक जी जान लेने. अब समऊने की बात है कि पुद्गल तो वह जी है, और वह जी है, परन्तु वह दुग्ध जलादिक तो विचम कर मिल जांय और काष्ट पत्थर आदि न मिले, कारण यह है कि वह दुग्ध, जल, प्रादिक पुगल बादर हैं. और का, पापा को प्राप्त हुए हैं.
पर्याय को प्राप्त हुए आदिक बादर पर्याय नको रे जमवादी ! तेग