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की चुद्धि (समझ ) में सत्य प्रतीत हुन्या
वा असत्य ?
जैनाचार्य्यः- ग्रसत्य.
भ्रमवादी: क्योंजी ? तुम्हारे सूत्रों में तो पदार्थज्ञान का सारांश यही है कि पुद्गल का मिलने - विमने का स्वभाव ही है. तो फिर वृक्त में से तख्ते मिलने और विद्यते का सम्बंध सत्य कैसे माना गया ?
उस समय सभासद तो क्या बल्कि जैनाचार्य्यजी को जी सन्देह हुआ. तव जेनाचा
जीने ग्राहारिक लब्धी फोमी. अर्थात अपने अन्तःकरण की शक्ति से मतिमानों की मनिसे अपनी मति मिला कर उसी वक्त पुद्गल केव नेत्र याद में लाये, और फर्माने लगे कि. अरे जोले ! तूने पुदगल का खाव एक मिलने का ही सीख लिया, परन्तु यह
नहीं जानता है कि पुद्गल का परिणामी स्व