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जैनाचार्य:- जघन्य (कम से कम) एक सूक्ष्म समय में मिल-बिठा सकते हैं; नत्कृष्ट (जियादा से जियादा ) असंख्यात काल तक,
नमवादी:-कोई दृष्टान्त (प्रमाण) जी है ?
जैनाचार्यः-शीशे के सन्मुख (सामने) कोई पदार्य किया जाय तो उल पदार्थ का प्रतिबिम्ब जस शीश (दर्पण) में शीघ्र (जल्दी) पर जाता है,और हटाने से प्रांत शीशे को परे करते ही हट जाता है. और सान पर लोहा धरने से शीघ्र अक्षि चल कर चिनगारे निकलते हैं. और जलने मूर्य की कान्ति पड़ने से शीघ्र ही साया जा पड़ता है, (इत्यादि) अन बुद्धिधारा मोच कर देखो कि वह पूर्वोक्त प्रतिविन (सावा) और अग्नि किसी पदार्थ के नो बने ही होगे, और कुछ
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