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ना होवे तो श्रीमद्भगवतीजी-प्रझापनजी आदिक सूत्रों में गुरु आम्नाय से सुन कर ओंर सीख कर प्रतीत (मालूम) कर लो. परन्तु पदार्थ का पूर्ण (पूरा) ३ ज्ञान होना बहुत कग्नि है. क्यों कि प्रत्येक (हरएक) जेनी नी बहुत काल तक पढते रहे तो ना नहीं जान सकते हैं; कोई विद्वान पुरुष दी जान सकते हैं.यथा दृष्टान्तःपाटनपुर नाम नगर निवासी एक "ईश्वर-कर्ता-ब्रमवादी' पूर्वोक्त पदार्थज्ञान परमाणु आदि पुद्गल के स्वनाव के जानने के लिये जनशास्त्र सीखने की इच्छा कर के जैन आचाया के पास शिप्य हो कर विनयपूर्वक कई वरसों तक शास्त्र सीखता रहा: जब अपने मनमें निश्चय किया कि में पदार्थ ज्ञात हो गया (जान गया) ई, तब निकल कर चमवादीयों में मिल जैनिओ से चर्चा करने का प्रारम्न किया. तब वह भ्रमवादी पदार्थ ज्ञान के विषय में