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________________ च्छडू इह मागच्छइता इह चेहआई वंद जंघाचारस्सणं गोवमाउदंएवइए गतिविसए पन्नत्ता। __अर्थ-हे भगवन् ! जंघाचारण मुनिका तिरछी गतिका विषय कितना है? गौतम ! सो एक डिगले रुचकवर जो तेरमाद्वीप है तिसमें समवसरण करे,करके तहांके चेत्य अर्थात्-शाश्वते जिनमंदिर(सि. द्धायतन ) में शाश्वती जिनप्रतिमा को वांदे, वांदके तहां से पीछे निवर्तता हुआदूसरे डिगले नंदीश्वरद्वीप में समवसरण करे, करके तहांके चैत्योंको वांदे वांदके यहां अर्थात् भरतक्षेत्र में आवे,आकरके यहांक चैत्य अर्थात् अशाश्वती जिनप्रतिमाको वांदे; जंघाचारणका तिरछी गतिका विषय इतना है तो हे भगवन् !जंघाचारण मुनि का ऊर्ध्व गतिका विषय कितना है ? गौतम ! सो एक डिगलमें पांडुक वन में समवसरण करे, करके तहां के चैत्यों को बांदे; वांद के वहां से पीछे फिरता हुआ दूसरे डिगल में नंदन वन में समवसरण करे, करके तहांके चैत्य वांदे वांदके यहां आवे, आकर के यहां के चैत्य वांदे; हे गौतम! जंबाचारण की ऊर्ध्व गतिका विषय इतना है। जैसे जंघाचारणकी गतिका विषय पूर्वोक्त पाठ में कहां है तैसे विद्याचारण मुनि की गति का विषय भी इसी उद्देश में कहा है विद्याचारण यहांसे एक डिगलमें मानुषोत्तर पर्वत परजाके तहांके चैत्य वांदते है,और दूसरे डिगलने नंदीश्वर द्वीपमें जाके तहांके चैत्य वांदते हैं;पीछे फिरते हुए एक ही डिगल में यह। आकरके यहां के चैत्य वांदते हैं इस सूजिन विद्याचारण की तिरछी । गतिका विषय है,ऊर्ध्वगति में एक डिगलमें नंदनवन में जाके तहां
SR No.010466
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1903
Total Pages271
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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